अध्याय 16 श्लोक 16 - 23 , BG 16 - 23 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 16 श्लोक 23जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परम गति की प्राप्ति हो पाती है ।अध्याय 16 : दैवी और आसुरी स्वभावश्लोक 16.23यः...
View Articleअध्याय 16 श्लोक 16 - 24 , BG 16 - 24 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 16 श्लोक 24अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान के अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है । उसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके ।अध्याय 16 :...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 1 , BG 17 - 1 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 1अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण! जो लोग शास्त्र के नियमों का पालन न करके अपनी कल्पना के अनुसार पूजा करते हैं, उनकी स्थिति कौन सी है? वे सतो गुणी हैं, रजो गुणी हैं या तमो गुणी?अध्याय 17 :...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 2 , BG 17 - 2 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 2भगवान् ने कहा - देहधारी जीव द्वारा अर्जित गुणों के अनुसार उसकी श्रद्धा तीन प्रकार की हो सकती है - सतोगुणी, रजोगुणी अथवा तमोगुणी । अब इसके विषय में मुझसे सुनों ।अध्याय 17 : श्रद्धा के...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 3 , BG 17 - 3 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 3हे भरतपुत्र! विभिन्न गुणों के अन्तर्गत अपने अपने अस्तित्व के अनुसार मनुष्य एक विशेष प्रकार की श्रद्धा विकसित करता है । अपने द्वारा अर्जित गुणों के अनुसार ही जीव को विशेष श्रद्धा से...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 4 , BG 17 - 4 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 4सतोगुणी व्यक्ति देवताओं को पूजते हैं, रजोगुणी यक्षों व राक्षसों की पूजा करते हैं और तमो गुणी व्यक्ति भूत-प्रेतों को पूजते हैं ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक 17.4यजन्ते सात्त्विका...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 5 , 6 , BG 17 - 5 , 6 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 5 - 6जो लोग दम्भ तथा अहंकार से अभिभूत होकर शास्त्र विरुद्ध कठोर तपस्या और व्रत करते हैं, जो काम तथा आसक्ति द्वारा प्रेरित होते हैं जो मूर्ख हैं तथा शरीर के भौतिक तत्त्वों को तथा शरीर...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 7 , BG 17 - 7 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 7यहाँ तक कि प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसन्द करता है, वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है । यही बात यज्ञ, तपस्या तथा दान के लिए भी सत्य है । अब उनके भेदों के विषय में सुनो...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 8 , 9 , 10 , BG 17 - 8 , 9 , 10 Bhagavad Gita As It Is...
अध्याय 17 श्लोक 8 - 10जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है ।ऐसा भोजन रसमय, स्निग्ध,...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 11 , BG 17 - 11 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 11यज्ञों में वही यज्ञ सात्त्विक होता है,जो शास्त्र के निर्देशानुसार कर्तव्य समझ कर उन लोगों के द्वारा किया जाता है, जो फल की इच्छा नहीं करते ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 12 , BG 17 - 12 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 12लेकिन हे भरतश्रेष्ठ! जो यज्ञ किसी भौतिक लाभ के लिए गर्ववश किया जाता है, उसे तुम राजसी जानो |अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक 17.12अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् |इज्यते...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 13 , BG 17 - 13 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 13जो यज्ञ शस्त्र के निर्देशों की अवहेलना करके, प्रसाद वितरण किये बिना, वैदिक मन्त्रों का उच्चारण किये बिना, पुरोहितों को दक्षिणा दिए बिना तथा श्रद्धा के बिना सम्पन्न किया जाता है, वह...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 14 , BG 17 - 14 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 14परमेश्र्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है |अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 15 , BG 17 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 15सच्चे, भाने वाले,हितकर तथा अन्यों को क्षुब्ध न करने वाले वाक्य बोलना और वैदिक साहित्य का नियमित पारायण करना - यही वाणी की तपस्या है ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 16 , BG 17 - 16 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 16तथा संतोष, सरलता, गम्भीरता, आत्म-संयम एवं जीवन की शुद्धि - ये मन की तपस्याएँ हैं |अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक 17.16मनः प्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 17 , BG 17 - 17 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 17भौतिक लाभ की इच्छा न करने वाले तथा केवल परमेश्र्वर में प्रवृत्त मनुष्यों द्वारा दिव्य श्रद्धा से सम्पन्न यह तीन प्रकार की तपस्या सात्त्विक तपस्या कहलाती है ।अध्याय 17 : श्रद्धा के...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 18 , BG 17 - 18 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 18जो तपस्या दंभपूर्वक तथा सम्मान, सत्कार एवं पूजा कराने के लिए सम्पन्न की जाती है, वह राजसी (रजोगुणी) कहलाती है । यह न तो स्थायी होती है न शाश्र्वत ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 19 , BG 17 - 19 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 19मूर्खता वश आत्म-उत्पीड़न के लिए या अन्यों को विनष्ट करने या हानि पहुँचाने के लिए जो तपस्या की जाती है, वह तामसी कहलाती है ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक 17.19.मूढग्राहेणात्मनो...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 20 , BG 17 - 20 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 20जो दान कर्तव्य समझकर, किसी प्रत्युपकार की आशा के बिना, समुचित काल तथा स्थान में और योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह सात्त्विक माना जाता है ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक...
View Articleअध्याय 17 श्लोक 17 - 21 , BG 17 - 21 Bhagavad Gita As It Is Hindi
अध्याय 17 श्लोक 21किन्तु जो दान प्रत्युपकार की भावना से या कर्म फल की इच्छा से या अनिच्छा पूर्वक किया जाता है, वह रजो गुणी (राजस) कहलाता है ।अध्याय 17 : श्रद्धा के विभागश्लोक 17.21यत्तु...
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