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Channel: Bhagavad Gita As It Is - Hindi ( श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप )
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अध्याय 17 श्लोक 17 - 15 , BG 17 - 15 Bhagavad Gita As It Is Hindi

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 अध्याय 17 श्लोक 15

सच्चे, भाने वाले,हितकर तथा अन्यों को क्षुब्ध न करने वाले वाक्य बोलना और वैदिक साहित्य का नियमित पारायण करना - यही वाणी की तपस्या है ।


अध्याय 17 : श्रद्धा के विभाग

श्लोक 17.15




अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् |

स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते || १५ ||



अनुद्वेग-करम् - क्षुब्ध न करने वाले; वाक्यम् - शब्द; सत्यम् - सच्चे; प्रिय - प्रिय; हितम् - लाभप्रद; - भी; यत् - जो; स्वाध्याय - वैदिक अध्यययन का; अभ्यसनम् - अभ्यास; - भी; एव - निश्चय ही; वाक्-मयम् - वाणी की; तपः - तपस्या; उच्यते - कही जाती है |



भावार्थ



सच्चे, भाने वाले,हितकर तथा अन्यों को क्षुब्ध न करने वाले वाक्य बोलना और वैदिक साहित्य का नियमित पारायण करना - यही वाणी की तपस्या है ।



तात्पर्य




मनुष्य को ऐसा नहींबोलना चाहिए कि दूसरों के मन क्षुब्ध हो जाएँ । निस्सन्देह जब शिक्षक बोले तो वह अपने विद्यार्थियों को उपदेश देने के लिए सत्य बोल सकता है, लेकिन उसी शिक्षक को चाहिए कि यदि वह उनसे बोले जो उसके विद्यार्थी नहीं है, तो उसके मन को क्षुब्ध करने वाला सत्य न बोले । यही वाणी की तपस्या है । इसके अतिरिक्त प्रलाप (व्यर्थ की वार्ता) नहीं करना चाहिए । आध्यात्मिक क्षेत्रों में बोलने की विधि यह है कि जो भी कहा जाय वह शास्त्र-सम्मत हो । उसे तुरन्त ही अपने कथन की पुष्टि के लिए शास्त्रों का प्रमाण देना चाहिए । इसके साथ-साथ वह बात सुनने में अति प्रिय लगनी चाहिए । ऐसी विवेचना से मनुष्य की सर्वोच्च लाभ और मानव समाज का उत्थान हो सकता है । वैदिक साहित्य का विपुल भण्डार है और इसका अध्ययन किया जाना चाहिए । यही वाणी की तपस्या कही जाती है ।





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By Srila Prabhupada in Hindi ,This is an attempt to make it available online , 
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