अध्याय 6 श्लोक 19
जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है |
अध्याय 6 : ध्यानयोग
श्लोक 6 . 19
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता |
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः || १९ ||
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता |
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः || १९ ||
यथा– जिस तरह; दीप– दीपक; निवात-स्थः– वायुरहित स्थान में; न– नहीं; इङगते – हिलता डुलता; सा– यह; उपमा– तुलना; स्मृता – मानी जाती है; योगिनः– योगी की; यत-चित्तस्य– जिसका मन वश में है; युञ्जतः– निरन्तर संलग्न; योगम्– ध्यान में; आत्मनः– अध्यात्म में |
भावार्थ
जिस प्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है |
तात्पर्य
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